Partnership firm क्या होती है? फायदे, नुकसान, पार्टनरशिप फर्म संबंधित जानकारी।

Partnership firm क्या होती है?

दोस्तों, इस पोस्ट के माध्यम से आप Partnership firm क्या होती है? पार्टनरशिप फर्म के क्या फायदे हैं? तथा क्या हमें पार्टनरशिप फर्म खोलनी चाहिए? फायदे, नुकसान, पार्टनरशिप फर्म संबंधित जानकारी के जवाब मिलेंगे।

स्टार्टअप के लिए भारत में साझेदारी फर्म को पंजीकृत करते समय, कुछ मूल बातें हैं जिन्हें कवर करने की आवश्यकता है। Partnership and proprietorship भारत में व्यापार संगठनों के दो सबसे लोकप्रिय रूप हैं। जब भी आप कोई बिज़नेस करते हैं तब आपको Partnership Firm के बारे में अवश्य ही पता होना चाहिए। जब दो या दो से अधिक व्यक्ति सामूहिक रूप से पूंजी की व्यवस्था करते हैं और आपसी समझौते या भारतीय भागीदारी अधिनियम के तहत व्यवसाय शुरू करते हैं, तो इस समझोते को partnership deed और इससे बानी संस्था को Partnership Firm (पार्टनरशिप फर्म) या साझेदारी फर्म कहा जाता है।

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पार्टनरशिप फर्म क्या होती है? (What is a partnership firm?)

जब एक से अधिक लोग मिलकर किसी एक व्यवसाय को करते हैं जिसमें वह न केवल मुनाफे को बाटते  है बल्कि कोई नुकसान, रिस्क और ज़िम्मेदारी को भी आपस में बाटते है, इस प्रकार के व्यवसाय को Partnership firm कहा जाता है।

किसी व्यापार का एक स्वामी होने पर उसे Proprietorship Firm और एक से अधिक व्यक्तिओ के समूह द्वारा चलाये जा रहे बिज़नेस को Partnership Firm कहते है।

Partnership तीन प्रकार  की होती है :

General Partnership: 

General Partnership में, प्रत्येक भागीदार वर्कलोड, देयता, और मुनाफे में समान रूप से साझा होता है सभी साझेदार सक्रिय रूप से व्यापार के संचालन में शामिल होते हैं।

Limited Partnership: 

Limited Partnership बाहरी निवेशकों को एक व्यवसाय में खरीदने की अनुमति देती है यह Partnership का एक और जटिल रूप है, जिसमें ownership and decision-making लेने के मामले में अधिक लचीलापन होता  है।

Joint Venture: 

शॉर्ट-टर्म प्रोजेक्ट्स जो एक परियोजना के लिए कई भागीदारों को एक साथ लाते हैं, आम तौर पर joint ventures के रूप में संरचित होते हैं। यदि बिज़नेस अच्छी तरह से प्रदर्शन करता है, तो इसे general partnership के रूप में जारी रखा जा सकता है अन्यथा, इसे बंद कर दिया जा सकता है।

Partnership Firm कब जरूरी है?

जब भी आपका व्यवसाय, इस लेवल पर पहुंच जाएगा कि आपको लगने लगे कि अब आपको अपने व्यवसाय को सोल प्रोपराइटरशिप या Partnership Firm फर्म से किसी कंपनी में तब्दील कर लेना चाहिए, उस समय आपको अपने व्यवसाय को किसी वन पर्सन कंपनी, प्राइवेट लिमिटेड कंपनी, या पब्लिक लिमिटेड कंपनी में बदलने में परेशानी नहीं होगी

पार्टनरशिप फर्म कैसे बनती है?

पार्टनर-शिप फर्म का निर्माण करना बहुत ही आसान है यदि हम बात करें सोल प्रोपराइटरशिप के मुकाबले तब पार्टनर-शिप फर्म बनाना थोड़ा सा मुश्किल है।

समझौता (Agreement)

सबसे पहले सब साझेदार (Partner) मिलकर आपसी सहमति द्वारा एक एग्रीमेंट करते हैं इस एग्रीमेंट में वह सभी दायित्व नियम एवं शर्तें लिख देते हैं। 

Indian Partnership act 1932

इंडियन पार्टनरशिप फर्म एक्ट 1932 में साझेदारी (partnership) फर्म के बारे में सभी कायदे कानून दिए गए हैं इन सभी क़ानूनों का पालन करने के बाद कोई पार्टनरशिप फर्म बनती है।

स्थापना एवं पंजीकरण (Establishment and Registration of Partnership Firm)

भारत में साझेदारी भारतीय साझेदारी अधिनियम 1932 के द्वारा शासित होती है Partnership Firm का पंजीयन व्यापार शुरू करने के पहले किया जाता है साझेदारी अनुबंध के लिए आवेदन और निर्धारित शुल्क राज्य के Registrar of firms को या online जमा करना आवश्यक होता है आवेदन के साथ निम्नलिखित दस्तावेज जमा करने की जरूरत होती है।

  • FORM- 1 की ओरिजनल copy सभी भागीदारो के हस्तक्षर सहित
  • शपथ पत्र के विधिवत भरे नमूने
  • Partnership Deed की Certified original copy
  • भागीदारों के रूप में कम से कम 2 सदस्यों की आवश्यकता है।
  • भागीदारों का पता प्रमाण और पैन कार्ड
  • व्यापार के मूल स्थान Lease/Rental Agreement or Ownership दस्तावेज
  • उसके पश्चात निर्धारित शुल्क के भुगतान पर रजिस्ट्रार के साथ पंजीकृत फर्म के सभी विवरणों की एक प्रति आवेदक को दे दी जाती है

Documents for Registration

  • PAN card 
  • Address Proof
  • GST Registration
  • Current Bank Account

भारत में Partnership Firm को आसानी से व्यवस्थित किया जा सकता है क्योंकि इसमें कोई अधिक कानूनी औपचारिकताओं की आवश्यकता नहीं होती है। 

आप अपनी partnership firm के online registration के लिए अपने प्रदेश सरकार द्वारा चलाई जारही Online सेवाओं का भी लाभ ले सकते है 

फायदे एवं विशेषतए (Advantages and Specialties of Partnership Firm)

Easy to setup

दो या दो से अधिक व्यक्ति मिलकर आपस में एक समझौते के तहत आपसी सहमति से व्यापार की शुरुआत बहुत ही आसानी से कर सकते हैं।

Low operating cost

कम खर्च में Partnership Firm को चलना आसान होता है साझेदारी में विभिन्न प्रकार की क्षमता वाले व्यक्ति जैसे धनी, चतुर, कुशल प्रबंधक, अनुभवी, साहसी आदि होते हैं जोकि व्यापार की सफलता में अपना योगदान प्रदान करते हैं।

Mutual discussion

Partnership Firm में किसी भी निर्णय पर पहुंचने के लिए आपस में पर्याप्त विचार विमर्श करते हैं जिससे गलतियों की संभावना कम हो जाती है।

Mutual understanding

क्योंकि साझेदारी लिखित या मौखिक होती है साझेदारी में अनुबंध आपसी सहमति से होता है इसलिए साझेदारों के बीच आपसी सामंजस बने रहते हैं।

Quick decision

साझेदारी में प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमताओं, ज्ञान व अनुभव के आधार पर अपनी राय देता है जिससे साझेदारी फर्म में संबंधित निर्णय को लेने में कठिनाई नहीं होती, वह शीघ्र निर्णय पर पहुंचने में आसानी होती है

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नुकसान एवं परेशानीया (Loss and Problems in Partnership Firm)

अधिक जोखिम

साझेदारी व्यवसाय में जोखिम अधिक होता है क्योंकि कई बार किसी भी निर्णय पर आपसी सहमति न होने के कारण साझेदारी फर्म में घाटा भी हो सकता है और हानि सभी को उठानी पड़ती है

असीमित दायित्व

साझेदारी संगठन में साझेदारों का दायित्व असीमित होता है अर्थात हानि लाभ होने पर देनदारो का भुगतान उन्हें अपनी निजी संपत्ति बेचकर भी करना पड़ सकता है।

आपसी मतभेद

जब साझेदारों की संख्या अधिक होती है तो फर्म संबंधित निर्णयो में या विचारों के ना मिलने पर सतत मतभेद होने की संभावना होती है।

गोपनीयता का अभाव

फर्म की समस्त गुप्त जानकारी व निर्णय साझेदारों तक ही सीमित होते हैं कई बार ऐसी जानकारी जो साझेदारों के मध्य में ही होनी चाहिए वह जानकारी यदि अन्य व्यक्तियों तक पहुंच जाए तो व्यापार में नुकसान हो सकता है।

अकुशल संचालन 

साझेदारों के मत एक समान ना होने के कारण कभी-कभी कुशल प्रबंध करना बहुत ही मुश्किल हो जाता है।

पार्टनरशिप फर्म संबंधित आवश्यक जानकारी: 

किसी भी Partnership firm की liability क्या होती है? 

Jointly & Individually Liability

इसका अर्थ यह यदि चार पार्टनर ने मिलकर ₹10 लाख का लोन लिया हुआ है, तो प्रत्येक पार्टनर को अपने हिस्सेदारी के प्रतिशत के अनुसार वह लोन चुकाना पड़ेगा जो चारों पार्टनर मिलकर लोन चुकाया उसे Jointly Liability कहा जाएगा।

जो हिस्सा प्रत्येक सदस्य ने व्यक्तिगत रूप से चुकाया उसे Individually Liability  कहा जाएगा।

असीमित दायित्व: Unlimited liability

जैसा कि आप जानते हैं कंपनी तथा अन्य संस्थानों में सबसे बड़ा फर्क देनदारी (Liability) का होता हैयदि साजिदारी फर्म में लगी पूंजी से अधिक घाटा हो जाए और फर्म बेचकर भी सभी कर्जे न चुकाए जा सके तब साझेदारों को अपनी निजी संपत्ति बेचकर कर्ज चुकाना पड़ता है।

यानी कि, यदि मैं साधारण भाषा में इसका अर्थ समझाऊं तो, इसका मतलब है यदि आपने अपने बिज़नेस के ऊपर किसी भी प्रकार का कोई लोन लिया है तो, उस लोन की रिकवरी के लिए, आपका घर, गाड़ी तक बिक सकता है।

पूंजी का प्रबंध (Capital management)

साझेदारी में पूंजी का प्रबंध सभी साझेदार मिलकर बराबर मात्रा में या अनुपातित मात्रा में करते हैं।

साझेदारों की संख्या (Number of partners)

कंपनी अधिनियम के अनुसार बैंकिंग व्यवसाय के लिए साझेदारों की अधिकतम संख्या 10 और अन्य व्यवसायों के लिए साझेदारों की अधिकतम संख्या 20 हो सकती है।

लाभ हानि का बंटवारा (Profit and loss sharing)

सभी साझेदारों को लाभ हानि का बंटवारा बराबर रूप से करना होता है या फिर लगाई गई पूंजी के अनुपात में भी यह बंटवारा कर सकते हैं यह सभी इसके द्वारा किए गए समझौतों (Partnership Deed) पर निर्भर करता है।

Dissolution of Partnership Firm

  • आपसी मतभेदो के कारण
  • व्यापार घाटे में जाने के कारण
  • साझेदारों में किसी एक साझेदार की मृत्यु
  • साझेदारो का दिवालिया घोषित हो जाना
  • साझेदारो की आपसी सहमति से
  • Partnership Firm का विघटन या समाप्ति हो सकती है
  • क्या पार्टनरशिप फर्म में कोई पार्टनर चेंज किया जा सकता है?
  • किया जा सकता है परन्तु इसमें छोड़ने वाले और जुड़ने वाले दोनों की सहमति होनी चाहिए।

FAQs: Partnership firm

पार्टनरशिप फर्म में कौन सा डॉक्यूमेंट अनिवार्य होता है?

पार्टनरशिप फर्म में सभी साझीदारों का आपस में एग्रीमेंट करना अनिवार्य होता है।

क्या किसी पार्टनर शिप फर्म को कंपनी में बदला जा सकता है?

जी हां, पार्टनर शिप फर्म को तय नियमों का पालन करने के उपरांत कंपनी में बदला जा सकता है।

पार्टनर शिप फर्म में मैक्सिमम कितने साझीदार हो सकते हैं?

पार्टनर शिप में मैक्सिमम 100 साझीदार हो सकते हैं।

यदि साझेदारी फर्म का कोई सदस्य मर जाए तब फर्म का क्या होगा?

किसी भी साझेदार की मृत्यु होने के उपरांत साझेदारी भंग हो जाएगी।

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