काशी विश्वनाथ मंदिर का अद्भुत इतिहास

काशी विश्वनाथ मंदिर|Kashi Vishwanath Temple

मोदी नरेंद्र मोदी ने सोमवार,13 दिसंबर 2021 को विश्वनाथ कॉरिडोर धाम काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण किया चुनाव यूपी चुनाव से पहले यह कार्यक्रम विशाल और भव्य कार्यक्रम है|इस कार्यक्रम में यूपी के कई बीजेपी नेता भी शामिल हुए और इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले बीजेपी शासित राज्यों से 12 सीएम और 9 डिप्टी सीएम भी वाराणसी पहुंचे थे|प्रधानमंत्री मोदी ने काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा करने के बाद पूरे परिसर का जायजा लिया और घूम कर मंदिर के निर्माण को देखा|

आइए जानते हैं काशी विश्वनाथ मंदिर के बारे में कहां स्थित है इसका इतिहास क्या है? और घूमने के लिए कैसा है?

काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास?

काशी विश्वनाथ का मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित है|11वीं सदी में राजा हरिश्चंद्र ने विश्वनाथ मंदिर का झीणो द्वार करवाया था|इसके बाद विक्रमादित्य ने भी इस मंदिर का निर्माण करवाया था| इतिहासकारों के अनुसार इस भव्य मंदिर को 1194 में मुस्लिम आक्रमणकारी मोहम्मद गोरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था उसके बाद फिर इसका निर्माण करवाया गया लेकिन एक बार फिर से जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने 1447 इसे दोबारा तुड़वा दिया 1585 में राजा टोडरमल की सहायता से पंडित नारायण भट्ट द्वारा इस मंदिर का फिर से भव्य निर्माण कराया गया|इस 1920 1632 में शाहजहां ने इस मंदिर को तोड़ने के लिए अपनी सेना भेजी सेना हिंदुओं के प्रबल विरोध के कारण विश्वनाथ मंदिर के मुख्य मंदिर को तो नहीं तोड़ सकी लेकिन काशी के 63 अन्य मंदिर को तोड़ दिया|

शाहजहां के विफल होने के बाद औरंगजेब ने 18 अप्रैल 1969 को काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करके एक मस्जिद बनाने का आदेश दिया कि यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है। उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां के ‘मासीदे आलमगिरी’ में इस ध्वंस का वर्णन है। औरंगजेब के आदेश पर यहां मंदिर तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई।औरंगजेब द्वारा तोड़े गए मंदिर के स्थान पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करवाया गया|

कई बार मंदिर को क्षति पहुंचाया गया जिसके कारण हिंदू परेशान थे 1772 से 1780 के बीच मराठा सरदार दत्ता जी सिंधिया और मल्हार राव होलकर ने मंदिर मुक्ति के प्रयास किए महादजी सिंधिया ने दिल्ली के बादशाह शाह आलम से मंदिर तोड़ने की क्षतिपूर्ति वसूल करने का आदेश भी जारी करवा लिया था परंतु उस समय काशी ईस्ट इंडिया का राज था जिसके कारण पुल निर्माण का काम रुक गया सन 1778 में अहिल्याबाई ने मंदिर का जीने द्वार करवाया था|1835 में पंजाब के महाराजा रंजीत सिंह ने इस के शिखर पर सोने का छत्र बनवाया था कुछ समय के बाद यहां पर नेपाल के राजा ने विशाल नंदी की प्रतिमा स्थापित करवाई|और ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया था|

काशी के हिंदुओं ने 1809 में जबरन बनाई गई मस्जिद पर कब्जा कर लिया क्योंकि यहां का संपूर्ण क्षेत्र ज्ञानवापी मंडप का क्षेत्र है 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी मी वाटसन ने वाइस प्रेसिडेंट शी इन काउंसलिंग को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिंदुओं को हमेशा के लिए सौंपने को कहा था लेकिन यह संभव नहीं हो सका|

वर्तमान समय में काशी विश्वनाथ मंदिर को आधुनिक रूप देने का काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया है और सोमवार (13/12/2021) को प्रधानमंत्री मोदी ने काशी विश्वनाथ कॉरिडोर लोकार्पण किया और पूरे देश को समर्पित किया|

वाराणसी के कुछ रोचक तथ्य :-

काशी विश्वनाथ मंदिर अति प्राचीन और पवित्र हिंदू धर्म का मंदिर है|

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस नगर की स्थापना भगवान शिव ने लगभग 5000 वर्ष पूर्व की थी|

यह हिंदुओं के पवित्र सप्त पुड़ियों में से एक है ब्रह्मा पुरान,लिंग पुराण, मत्स्य पुराण,अग्नि पुराण,स्कंद पुराण,रामायण,महाभारत एवं प्राचीनतम वेद ऋग्वेद सहित कई हिंदू ग्रंथों में इस नगर उल्लेख आता है

वाराणसी शहर को लगभग 3000 वर्ष प्राचीन माना जाता है परंतु हिंदू परंपराओं के अनुसार वाराणसी शहर को इससे भी अत्यअधिक प्राचीन माना जाता है|

वाराणसी शहर के बारे में यह भी कहा जाता है जब पृथ्वी का निर्माण हुआ था तब रोशनी की सबसे पहली किरण यहीं पर पड़ी थी|

लंबी काल से वाराणसी को अविमुक्त क्षेत्र आनंद कानन महासमसान सुरेंद्र ब्रह्मावर्त सुदर्शन रम्य एवं काशी नाम से भी संबोधित किया जाता रहा है स्कंद पुराण के काशी खंड में नगर की महिमा बताई गई है जिसमें भगवान शिव ने एक श्लोक के जरिए वाराणसी का वर्णन किया है|यह शहर हिंदू धर्म में सर्वाधिक पवित्र नगरों में से एक माना जाता है और साथ ही साथ इसे बौद्ध धर्म और जैन धर्म में भी पवित्र माना गया है|

यह शहर संसार के प्राचीनतम शहरों में से एक है और भारत का प्राचीनतम शहर है|

यह शहर सबसे पवित्र और पूजनीय स्थल है|

वाराणसी का सबसे पुराना उल्लेख महाभारत में मिलता है महाभारत पूर्व के किसी भी साहित्य में किसी भी तीर्थ आदि के बारे में कोई उल्लेख नहीं है|

वाराणसी का नाम दो नदियों वरुणा और असि के संगम पर पड़ा|

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार वाराणसी शहर भगवान शिव जी और देवी पार्वती का निवास स्थान हुआ करता था ऐसा कहा जाता है कि जो भी सबसे आखिर तक यहां जिंदा रहेगा उसे जरूर ही मोक्ष की प्राप्ति होगी|

वाराणसी एक ऐसा शहर है जहां आपको असंख्य संख्याओं में मंदिर देखने को मिल जाएगा जो शेर और वैष्णो देवी को समर्पित है यह दोनों ही धर्म हिंदू धर्म के रूप है जो सद्भाव से यहां मौजूद है|

यह जैन धर्म का भी प्रमुख केंद्र है क्योंकि 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का जन्म यहीं पर हुआ था

यहां पर आपको हर एक चौराहे पर एक मंदिर देखने को मिल जाएगा|

यह अनेकों बड़े मंदिर हैं जो वाराणसी के इतिहास में समय-समय पर बनवाए गए हैं इसमें काशी विश्वनाथ मंदिर अन्नपूर्णा मंदिर काल भैरव दुर्गा जी का मंदिर संकट मोचन मंदिर तुलसी मानस मंदिर नया विश्वनाथ मंदिर भारत माता मंदिर संकटा देवी मंदिर व विशालाक्षी मंदिर प्रमुख है|

कहा जाता है कि भगवान शिव की काशी के परमात्मा है इसीलिए अन्य ग्रह भी अपनी मर्जी से यहां कुछ भी नहीं कर सकते जब तक शिव जी का आदेश ना हो|

यह भी कहा जाता है कि शनि देवता जब भगवान शिव की खोज में काशी आए थे तब वह उनके मंदिर में लगभग साडे 7 सालों तक प्रवेश नहीं कर पाए थे काशी विश्वनाथ मंदिर के बाहर ही शनिदेव का मंदिर है|

यह शहर अध्यात्मिक केंद्र के साथ-साथ आयुर्वेद और योग के प्राचीन समग्र चिकित्सा विज्ञान से भी जुड़े हुए हैं यह शिक्षा और संस्कृति का भी प्रमुख केंद्र है|

इस शहर को प्राचीन काल से ही व्यापार का प्रमुख केंद्र माना जाता है यह मुख्यता सोने और चांदी के किए हुए काम और बनारसी सिल्क साड़ियों के लिए जाना जाता है|

वाराणसी क्षेत्र में कई गौरवशाली प्रतिभाओं ने जन्म लिया जिसमें कई दार्शनिक,कवि लेखक,संगीतय वाराणसी में ही रहे जिनमें वल्लभाचार्य,रविदास,स्वामी रामानंद तेलंगस्वामी,शिवानंद गोस्वामी,मुंशी प्रेमचंद,जयशंकर प्रसाद,आचार्य रामचंद्र शुक्ल,पंडित रवि शंकर,गिरजा देवी,पंडित हरिप्रसाद चौरसिया एवं उस्ताद बिस्मिल्लाह खान

तुलसीदास जी ने हिंदू धर्म का ग्रंथ रामचरितमानस भी यहीं पर लिखा था|

गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश वाराणसी निकट सारनाथ में दिया था|

वाराणसी के अश्वमेघ घाट पर एक अजीबोगरीब रिवाज होता है जिसमें हर साल बारिश के मौसम में मेंढको की शादी कराई जाती है यह के पंडित मेंढको की शादी के सारे अनुष्ठानों को पूरा कर मेंढको को नदी में छोड़ देते हैं|

आपको काशी विश्वनाथ मंदिर के रहस्य में बातों को जानकर कैसा लगा हमें कमेंट करके बताइएगा इसी तरह के रहस्यम चीजों को जानने के लिए हमारे website को follow करें

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